सोमवार, 11 जुलाई 2016

नज़्म

नज़्म कुछ नाराज़ है मुज़से,
कुछ पूंछू, क्यों नाराज़ हो मुझसे ?
वो बस आँखे दिखा कर, बोलती कुछ नहीं
में समज़ जाता हु की क्या शिकायत है उसकी
पर बस कुछ दुश्वारियां है की अल्फ़ाज़ अब उतरते नहीं कागज़ों पर !!

शनिवार, 11 जून 2016

अल्फ़ाज़


सामने हो पर फासले कुछ खाई से नज़र आते है,
अल्फ़ाज़ आते है दिमाग से पर ज़बान पर आने से सुख जाते है सारे ।
हाँ दरारें है कुछ उस सुखी मिट्टी की तरह् जो
कुछ बुँदे पानी की गिरने से भर जाती ह,
चले दो कदम साथ फिरसे ? शायद कुछ पानी बरस जाए और मिट्टी भीग जाए --
चिरायु

शुक्रवार, 24 जुलाई 2015

एक जूमला

सुबह की चाय से शुरू होती है सियासत
अख़बार की काली सियाही से घर तक आती है सियासत
भीड़ में भी चलती है सियासत
कही सन्नाटो में भी गूंजती है सियासत
बेहिसाब जुमलो में चिल्लाती है सियासात
किसीको कंधे पर उठाने में भी है सियासत,
किसी को पटकने भी काम आती है सियासत
बड़े बड़े मंच से सियासतदानों बांटी है मुफ्त में 
कही रोटी कही बिजली,
पर मेरे मुह को तो पानी भी नसीब नहीं
बस बाजारों में ऐसे ही बिक रही है सियासत ..


सोमवार, 1 सितंबर 2014

टटोलती आँखे

पूरा दिन उमस से भरा हुआ.
शाम भी जाने रुक रुक कर सांस ले रही थी,
शायद घुटन सी थी आज कुछ.
पर रात जाने पूरब की और से कुछ सौगात ले आई
धीरे धीरे सारा आलम बदलने लगा
दबी दबी सी चलने वाली हवाओ ने अपने पंख फैला लिए थे
बादलों ने भी बुलावा सुन लिया
बिजली की कड़कड़ाहट ने बरामदे में कड़ी गुड़िया को डरा ही दिया, फट से उसने आँखों के
सामने अपने हाथो को रख दिया और बस उंगलियों के परदे से वो झांकती रही
कई दिनों से आसमान टटोलती इन आँखों ने देखा वो बरसता पानी, बरसता पानी .....
.....

बुधवार, 27 नवंबर 2013

बदलाव

आज मेरे कमरे कि वो खिड़की खोल दी जो कुछ वक़्त पहले मैंने बंद कर रखी थी,
खोलकर देखा बहार तो कई इमारते खड़ी  हो गई थी, कई शक्ले बिलकुल बदल चुकी थी
पहले रोज अच्छी हवा चलती थी अब तो घुटन सी महसूस हुई I
मैंने इस खिड़की से कई बार उस सूरज को उगते भी देखा था और आज ढलने की शक्ल
भी नही दिखाता,
बस एहसास हुआ कि वो खिड़की ही नहीं मैंने एक बदलाव खोल दिया हो जैसे I

मंगलवार, 3 सितंबर 2013

चुनावी रोटी

कही चुनावी खोखले दावों में फ़सी पड़ी है रोटी
कही सियासी गलियारों में अटकी हुई है रोटी
रात हुई जब छोटू ने अपनी माँ से मांगी रोटी
तो माँ ने आज भी कटोरी में चाँद दिखाया छोटू को
और छोटा सा टुकड़ा खिलाकर सुला दिया .....

बुधवार, 7 अगस्त 2013

"मिट्टी"

लोग केहते है की में किसी अलग मिट्टी का बना हू।
मैं इनकार करता हू,
क्यूंकि मिट्टी तो वही है जिस्से बाकि इंसा बने है,
बस फर्क इतना है की वक़्त ने मेरी रूह को खूब तापा है !!!!